बाल श्रम के बारे में
बाल श्रम की समस्या देश के समक्ष अभी भी एक चुनौती बन कर खड़ी है। सरकार इस समस्या को सुलझाने के लिए विभिन्न सकारात्मक सक्रिय क़दम उठा रही है। फिर भी, समस्या के विस्तार और परिमाण पर विचार करते हुए तथा मूलतः यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या होने के कारण, जो विकट रूप से ग़रीबी और निरक्षरता से जुड़ी है, इस समस्या को सुलझाने के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा ठोस प्रयास करने की ज़रूरत है।
२००१ की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार २५.२ करोड़ कुल बच्चों की आबादी की तुलना में, ५-१४ वर्ष के आयु समूह में १.२६ करोड़ बच्चे काम कर रहे हैं। इनमें से लगभग १२ लाख बच्चे ऐसे ख़तरनाक व्यवसायों/प्रक्रियाओं में काम कर रहे हैं, जो बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम के अंतर्गत आवृत हैं अर्थात् १८ व्यवसाय और ६५ प्रक्रियाएँ। हालाँकि, २००४-०५ में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, काम करने वाले बच्चों की संख्या ९०.७५ लाख होने का अनुमान है। यह दर्शाता है कि सरकार के प्रयासों ने वांछित परिणाम हासिल किए हैं।
बहुत पहले १९७९ में ही, सरकार ने बाल श्रम की समस्या के अध्ययन और उससे निपटने के लिए उपाय सुझाने हेतु गुरुपादस्वामी समिति नामक प्रथम समिति का गठन किया था। समिति ने विस्तार से समस्या का परीक्षण किया और कुछ दूरगामी सिफारिशें की। उसने पाया कि जब तक ग़रीबी जारी रहेगी, तब तक बाल श्रम को पूरी तरह मिटाना मुश्किल हो सकता है और इसलिए, किसी क़ानूनी उपाय के माध्यम से उसे समूल मिटाने का प्रयास व्यावहारिक प्रस्ताव नहीं होगा। समिति ने महसूस किया है कि इन परिस्थितियों में, ख़तरनाक क्षेत्रों में बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाना और अन्य क्षेत्रों में कार्यकारी परिस्थितियों को विनियमित करना और उनमें सुधार लाना ही एकमात्र विकल्प है। उसने सिफ़ारिश की है कि कामकाजी बच्चों की समस्याओं से निपटने के लिए विविध-नीति दृष्टिकोण आवश्यक है।
गुरुपादस्वामी समिति की सिफारिशों के आधार पर, १९८६ में बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम लागू किया गया। अधिनियम कुछ निर्दिष्ट ख़तरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में बच्चों के रोज़गार पर प्रतिबंध लगाता है और अन्य स्थलों पर कामकाजी परिस्थितियों को नियंत्रित करता है। अधिनियम के तहत गठित बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति की सिफ़ारिशों के आधार पर ख़तरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं की सूची को उत्तरोत्तर विस्तृत किया जा रहा है।
उपरोक्त दृष्टिकोण के अनुरूप, १९८७ में बाल श्रम पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार की गई। सर्वप्रथम यह नीति ख़तरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में काम करने वाले बच्चों के पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करते हुए, एक क्रमिक और अनुक्रमिक दृष्टिकोण अपनाने का प्रयास करती है। इस समस्या को सुलझाने के लिए नीति में दर्शाई गई कार्य-योजना निम्नतः है:
बाल श्रम अधिनियम और अन्य श्रम कानूनों के कड़ाई से प्रवर्तन के लिए विधायी कार्य योजना, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ख़तरनाक क्षेत्रों में बच्चों को नियोजित नहीं किया जाता है और ग़ैर-ख़तरनाक क्षेत्रों में काम करने वाले बच्चों की कामकाजी परिस्थितियाँ बाल श्रम अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार विनियमित की जाती हैं। यह बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए हानिकारक अतिरिक्त व्यवसायों और प्रक्रियाओं की आगे पहचान की आवश्यकता पर भी ज़ोर देता है।
बाल श्रमिकों के लाभार्थ सामान्य विकास कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित करना - चूँकि ग़रीबी बाल श्रम का मूल कारण है, कार्य-योजना इन बच्चों और उनके परिवारों को सरकार के विभिन्न ग़रीबी उन्मूलन और रोज़गार सृजन योजनाओं के तहत भी आवृत करने की ज़रूरत पर बल देती है।
परियोजना आधारित कार्य-योजना में, बाल श्रम के उच्च संकेंद्रित क्षेत्रों में परियोजनाओं को शुरू करने की परिकल्पना की गई है। इसके अनुसरण में, १९८८ के दौरान, देश के उच्च बाल श्रम स्थानिकता वाले ९ जिलों में राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) नामक योजना का प्रवर्तन किया गया। इस योजना में काम से छुड़ाए गए बाल श्रमिकों के लिए विशेष पाठशालाएँ चलाने की परिकल्पना की गई है। इन विशेष पाठशालाओं में, इन बच्चों को व्यावसायिक प्रशिक्षण के अतिरिक्त औपचारिक / अनौपचारिक शिक्षा, १५० प्रति माह का वज़ीफ़ा, संपूरक पोषण और नियमित रूप से स्वास्थ्य परीक्षण प्रदान किया जाता है, ताकि उन्हें मुख्य धारा वाले नियमित पाठशालाओं में भर्ती होने के लिए तैयार किया जा सके। इस योजना के तहत बाल श्रमिकों हेतु विशेष स्कूल चलाने के लिए जिलाधीशों को निधि प्रदान की जाती है। इनमें से अधिकांश पाठशालाएँ जिले के ग़ैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाई जा रही हैं।
सरकार तदनुसार पुनर्वास उपायों सहित वैधानिक प्रावधानों को कड़ाई से लागू करते हुए इस समस्या को सुलझाने के लिए सकारात्मक सक्रिय कदम उठा रही है। राज्य सरकारों द्वारा, जो कि समुचित कार्यान्वयन प्राधिकरण हैं, उल्लंघन के मामलों का पता लगाने के लिए नियमित निरीक्षण और छापों का संचालन किया जा रहा है। चूँकि गरीबी इस समस्या का मूल कारण है, और केवल प्रवर्तन द्वारा समस्या का निवारण नहीं हो सकता है, सरकार द्वारा इन बच्चों के पुनर्वास और उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने पर अत्यधिक ज़ोर दिया जा रहा है।